LØCK3T... भाग -3( THE END)
क्या करवाना चाहती थी वह मुझसे और वह लड़की जिसकी... जिसकी लाश मैंने उसके घर में देखी वह कौन थी और क्या उसे रोशनी ने मारा था अच्छा हुआ जो मैं वहां से बाहर निकलो वरना ना जाने.. वह मेरे साथ क्या-क्या करती मैं खुद उर्दू था जो कि उसके साथ उसके घर तक कुछ और समझ कर गया...
मुझे वह किसी चुड़ैल की तरह लग रही थी और मुझे यह तो यही लग रहा था कि कहीं वह मेरे पीछे ना पड़ जाए मैं दिल ही दिल में ऊपर वाले से यही दुआ मांग रहा था कि वह लड़की मुझसे कभी सपने में भी ना मिले
"अवधेश भैया अवधेश भैया"
"क्या हुआ गुड़िया"
"वह नीचे वाली आंटी ना खाना नहीं दे रही है, बोल रही है कि..."
"तू यहीं बैठ में आता हूं.. "बिस्तर से उठकर मैंने शर्ट पहनी और नीचे की तरफ से लिया जाने लगा
इस वक्त मैं गाली खाने जा रहा था कि गुड़िया जिसे आंटी बोल रही थी वह कोई और नहीं बल्कि हमारे किराए के मकान की मालकिन थी और उन्हीं के मेस में हम खाना भी खाते थे. गुड़िया बहुत छोटी थी इसलिए हर कहीं फुदकती रहती थी कभी-कभी तो रूम मालकिन के पास में चली जाती उनकी बेटी के साथ खेलती... जिसका फायदा सीधे मुझे होता था क्योंकि यदि मैं टैक्सी चला रहा होता हूं तो गुड़िया में के घर के पार्क में खेलती रहती है और यदि रात हो जाए तो वह उन्हीं के घर में सो जाती थी. हमारी रूम मालकिन दिल की बहुत अच्छी थी मैंने गुड़िया को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं की बल्कि वह भी उससे प्यार करती थी....
पर जिंदगी प्यार के सहारे नहीं चलती उसके लिए बहुत सारा पैसा चाहिए होता है हमारी रूम मालकिन मेरी मजबूरी समझती थी इसलिए उन्होंने मेरी लेट लतीफ के लिए कभी ज्यादा लड़ाई नहीं की लेकिन इस बार रूम का किराए दिए हुए इस वक्त 3 महीने से ज्यादा हो चुका था और गुड़िया को मैस से खाली पेट भेजने का उसका यही मकसद था कि मुझे थोड़ा अकल आए... और मैं उसे पैसे जल्दी दूं. मैं खुद भी यह बात बहुत अच्छी तरह से जानता था, समझता था.. लेकिन पिछले कई महीने की कमाई सिर्फ मेरे इलाज में निकल जा रही थी.. इसलिए अभी मुश्किल था उस दिन में मकान मालकिन से बात करने पर ही मालूम चला कि यदि मैंने उनको पैसे जल्दी नहीं चुकाए तुम मुझे रूम खाली करना पड़ेगा एक तो यह जानलेवा बीमारी और ऊपर से पैसों की कमी ने मेरी परेशानी मैं चार चांद लगा दिए थे. मैंने उनसे मेहनत की की वह आज गुड़िया को खाना दे दे कल मैं उनके आधे पैसे चुका दूंगा
उसके बाद मैंने सीधे टैक्सी निकाली और कुछ कमाने निकल गया.. क्योंकि अभी थोड़े बहुत पैसे भी मैं उन्हें दे देता तो कुछ दिनों की मोहलत मिल जाती. मैं निकला तो किसी और काम से था लेकिन इस वक्त भी मेरी आंखों के सामने कल रात वाला दिल से चल रहा था मुझे वह लड़की दिख रही थी उसकी वह मुस्कान देख रही थी और उसके बाद मैंने देखा एक घर और उस घर के भीतर एक लाश. जिसके पूरे शरीर के कपड़े गायब थे और शरीर पूरा खून से सना हुआ था
अग्रसेन चौक तक चलोगे भैया... दो लड़कों ने खिड़की के अंदर झांक कर मुझे आवाज दी
"अग्रसेन चौक.... "यह सुनते ही मैंने तुरंत मना कर दिया.
" प्लीज भैया चलो ना डबल पैसा ले लेना बहुत रात हो गई है..."
"अच्छा बैठो .." डबल किराया सुनकर मैंने उन्हें बैठने के लिए कहां, क्योंकि कैसे भी करके मुझे अपने मकान मालकिन का बिल चुकता करना था. लेकिन परेशानी अब भी थी.. कि मेरे जाने के बाद यह सब कौन करेगा...
उन दोनों को अग्रसेन चौक तक छोड़ने के बाद मैंने उस लड़की के घर की तरफ देखा.. जहां से कल रात में भागा था. ना जाने क्यों अब वह घर मुझे एक भूतिया घर दिख रहा था, एक बार मैंने सोचा कि जाकर पुलिस को इसकी खबर दे दूं. लेकिन अगले ही पल ख्याल आया कि वह जादू टोने से कुछ कर ना दे. वैसे भी मेरा कोई ना देना नहीं उस मरने वाली लड़की से. इसलिए मैंने वहां से जाने में ही भलाई समझी. मैंने टैक्सी वापस घर की तरफ मोड़ दे लेकिन चिंता इस बात की सता रही थी कि मैं अपने मकान मालकिन से क्या बहाना मारूंगा आज की पूरी कमाई तो सिर्फ 500 ही है. इतने में तो वह मानने से रही. ऊपर से आज गुड़िया बोल रही थी कि उसे बुखार है उसके लिए दवाई भी लेनी है.
और उस मनहूस वक्त में मैंने अपनी टैक्सी डरते हुए वापस अग्रसेन चौक तक मोड़ी और वहां से उधर की तरफ जहां मुझे हरगिज़ नहीं जाना चाहिए था, कुछ देर तक मैं रोशनी के घर के बाहर ही टैक्सी में बैठा रहा. एक अजीब सा डर इस वक्त मुझे ठहरे हुए थे ना जाने अंदर क्या होगा ना जाने वह मुझे देख कर क्या करेगी.. कहीं वह मुझे भी ना मार दे.. लेकिन उसने कल रात कहा था कि मेरी बीमारी के इलाज वह कर सकती है...
खुद को मजबूत करके मैं कांपते हुए कदमों के साथ टैक्सी से निकलकर दरवाजे की तरफ बढ़ा और दरवाजे के नजदीक पहुंच कर भी मैं बहुत देर तक वहां खड़ा यह सोचता रहा के अंदर जाऊं या ना जाऊं. चाचा मैंने दरवाजा के बाहर लगी घंटी बजाई और अगले ही पल दरवाजा खुला. और उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरे सामने था रोशनी को देखकर मेरा गला सूख गया वह इस वक्त अपने जिसमें सिर्फ एक कपड़ा लपेटे हुए थी. और उसका पूरा जिस्म इस तरह से भीगा हुआ था जैसे कि वह भी कुछ देर पहले नहा रही हो, यदि वह नहा रही थी तो फिर इतनी जल्दी से दरवाजा कैसे खोला ? क्या उससे पहले से मालूम था कि मैं यहां आने वाला हूं ?
"मैं जानती थी तुम जरूर आओगे..." सामने से हट कर उसने मुझे अंदर आने का इशारा किया और सीढ़ियों से ठीक उसी रूम की तरफ जाने लगी जहां मैंने कल रात एक लड़की के खून से सनी लाश देखी थी
"अरे आओ... घबराओ मत, कुछ नहीं है अब... "रूम के बाहर जब मैं खड़ा हो गया तो वह बोली और फिर अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़ कर अंदर खींच ली.. अंदर सचमुच में कल जैसा कुछ भी नहीं था मैंने पूरे रूम पर एक नजर मारी और बोला..
"मेरी बीमारी का इलाज हो सकता है ?"
"बिल्कुल हो सकता है लेकिन उसके लिए मैं तुम्हें जो कहूंगी करना पड़ेगा..."
"ना तो मैं किसी दूसरे की जान लूंगा और ना ही अपनी दूंगा.. "उसके कुछ भी आगे बोलने से पहले ही मैं बोल पड़ा
वैसे तो उस वक्त में कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था क्योंकि मुझे उसकी जरूरत थी और मैं खुद ही यहां आया था इसलिए जो भी बोलना था उसे ही बोलना था लेकिन मैं फिर भी बोला कांपते हुए बोला जिसके जवाब में उसने एक एक बार फिर अपनी कातिलाना मुस्कान मुझे दिखाने लगी
"कोई बात नहीं, मैं तुमसे ऐसा नहीं करवाउंगी... लेकिन जो काम है वह बहुत ही खतरनाक है"
" क्या करना पड़ेगा मुझे"
"तुम कल यही, इसी वक्त पर आना, वह मैं तुम्हें बता दूंगी.. अब तुम जा सकते हो या फिर आज रात यही रुक कर मैं क्या करती हूं यह देख सकते हो.."
मैं पागल नहीं था इसलिए मैं तुरंत वहां से निकलने के लिए पीछे मुड़ा लेकिन तभी उसने मुझे फिर आवाज दी
"सुनो यह लो"
"क्या."बोलते हुए मै पीछे मुड़ा तो मेरा मुंह खुला खुला रह गया इस वक्त मेरे सामने 100-100 के नोटों की एक गड्डी थी
"ले लो... यह तुम्हारा एडवांस है"
उसके हाथ से मैंने वो गड्डी लिए और लगभग दौड़ते हुए वहां से बाहर निकला. दूसरे दिन में ठीक उसी समय पर वहां पहुंचा आज उसके घर का दरवाजा पहले से ही खोला था इधर तो आज भी लग रहा था लेकिन कल से थोड़ा काम... दो बार वाले रूम में ही बैठे टीवी देख रही थी और आज उसके पूरे जिस्म मे कपड़े थे.मुझे देखते ही उसने मुझे अपने साथ ऊपर चलने के लिए कहा और जैसे ही उस रूम में मैं दाखिल हुआ, मैंने अपनी आंखें बंद कर ली... इस वक्त वहां जमीन पर एक लाश पड़ी हुई थी उस वक्त लाश पर मेरी सिर्फ एक नजर गई थी लेकिन फिर भी मैंने बहुत कुछ देख लिया था... जो लाश इस वक्त जमीन पर पड़ी थी उसकी दोनों आंखों को बड़ी बेरहमी से निकाला गया था... जीभ बाहर करके, जीभ के बीचो बीच लकड़ी का एक टुकड़ा घुसाया गया था.
"तुम्हारा काम यह है कि तुम उसके शरीर को ठिकाने लगाओगे.."
"क्या.. ये करना होगा..."
" यही काम है"
मुझे उसी वक्त उसके काम के लिए मना कर देना चाहिए था और उस दिन की तरह आज भी वहां से भाग जाना चाहिए था लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया मैं वहीं खड़ा होकर अपनी आंखें बंद किए हुए था, शायद मैं उस वक्त का इस काम के लिए हिम्मत जुटा रहा था. उसके बाद मैंने वैसा ही किया जैसे उसने कहा था मैंने उस लाश को टैक्सी में रखा और फिर एक खाई से नीचे फेंक दिया... जहां नीचे एक नदी बहती थी. उसने फिर मुझे नोटों की एक गड्डी थमा दी. इस बार उसने मेरा मोबाइल नंबर भी लिया और मुझे अपना नंबर दिया. उसने कहा कि उसे जब भी मेरी जरूरत होगी वह मुझे बुला लेगी.
उसके बाद एक हफ्ते तक उसका कोई फोन नहीं आया उसके लिए वह पैसों से मेरी उस वक्त की लगभग सारी परेशानी दूर हो गई थी लेकिन मुझे अंदाजा होने लगा था कि मेरे इस काम का नतीजा बहुत बुरा होगा. मैं तुझे पाप कर रहा हूं इसका बुरा परिणाम मुझे भुगतना ही पड़ेगा. मेरे इस कुकर्मो का असर गुड़िया पर ना पड़े.. इसलिए मैंने जादू टोना से बचाने वाली एक लॉकेट लाकर उसके गले में बांध दिया था.
एक हफ्ते बाद जब मैं टैक्सी चला रहा था तो रोशनी का फोन आया, उसने मुझे रात को ठीक उसी वक्त आने के लिए कहा. क्योंकि मुझे अंदाजा हो गया था कि मुझे क्या करना है इसलिए मैं थोड़ा तैयारी से वहां गया और मेरा अंदाजा सही भी निकला. उस दिन की तरह आज भी मुझे एक लाश को ठिकाने लगाना था.
वैसे तो मुझे कैंसर की बीमारी ने जकड़ रखा था, लेकिन इस वक्त मेरे पूरे शरीर में पाप भरा हुआ था मैं जानता था कि मैं जो कर रहा हूं वह गलत ही नहीं बल्कि पाप भी है लेकिन मेरे इस पाप से दो जिंदगिया संवर रही थी....एक मेरी और दूसरी मेरी बहन की.. ईसलिए मैं इस काम को करता गया.. क्योंकि इसके अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उसके बाद उसने मुझे दो बार और बुलाया इस दौरान हम दोनों के बीच यौन संबंध में बना... उसी की मर्जी से. क्योंकि उसने मुझे कहा था कि यदि मुझे कैंसर की बीमारी से छुटकारा पाना है तो मुझे उसके साथ सोना ही पड़ेगा. बार-बार मेरे काम के पैसे मुझे देती थी हम बोलते कि जल्दी मेरी बीमारी दूर हो जाएगी और फिर मुझे वह छोड़ देगी. और मुझे बस उसी दिन का इंतजार था.
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यही सब सोचते हुए मेरा फोन जो अभी तक इतनी देर से शांत पड़ा था वह बजने लगा...कॉल रोशनी की थी.
"आज बस आखरी बार मेरा काम कर दो... फिर तुम जा सकते हो. मैं तुम्हें नहीं फिर कभी नहीं बुलाऊंगी"
"और मेरी बीमारी ?"
"वह तो कब की ठीक हो चुकी है डॉक्टर से टेस्ट करवा कर देख सकते हो..."
"ठीक है मैं आ जाऊंगा"
उसके बाद मैंने फोन वापस अपनी जेब में ठूसा और सबसे पहले उसी डॉक्टर के पास गया जिसने मुझे मेरे आने वाली मौत की खबर सुनाई थी और इस वक्त अपनी आंखें फाड़ फाड़ कर कभी मुझे देखता है तो कभी मेरी रिपोर्ट को...
"I can't believe this... how is this even possible... तुम ठीक कैसे हुए ?"
"धन्यवाद साहब"
" तुम्हारी रिपोर्ट देख कर ऐसा लगता है जैसे तुम्हें कभी कुछ हुआ ही नहीं था"
उसके बाद मैंने टैक्सी रोशनी के घर की तरफ मोड़ी और हर बार की तरह आज भी उसके घर का दरवाजा खुला हुआ था जब बाहर वाले रुम में वह मुझे नहीं दिखे तो मैं सीधे उस रूम की तरफ बढ़ा... जहां वह अपने चीरा फाड़ी के काम को अंजाम देती थी. मुझे अभी तक इसकी कोई जानकारी नहीं थी कि वह जिन्हें मारती है वो कौन है, और वह ऐसा क्यों करती है... और ना ही मैंने इसके बारे में कभी ज्यादा सोचा... क्योंकि सोचने का कोई मतलब भी नहीं था.
हर बार की तरह वहां आज भी एक लाश थी, जिसके पूरे जिस्म को एक सफेद चादर से लपेट दिया गया था... मेरे हाथ हमेशा की तरह आज भी लाश को उठाते हुए काँप रहे थे. उसने मुझे आज कुछ भी नहीं कहा... उसकी हर बार वह मुझे अगली तारीख बता देती है, मुझे आना होता है. लेकिन वह आज मुझे कुछ नहीं बोली.. क्योंकि आज मेरा आखिरी दिन था. बीमारी के साथ साथ मैं उससे भी मुक्ति पा रहा था. मैंने लाश को टैक्सी में रखाऔर उस खाई की तरह बढ़ चला जहां से मैंने कई लाशों को नीचे फेंका था.
"मुझे माफ करना... मैं यह सब बिल्कुल भी नहीं करना चाहता था.. लेकिन मेरी बहन के ख्याल ने मुझे यह सब करने पर मजबूर कर दिया..." कहते हुए मैंने लाश को खाई से नीचे फेंका और जैसे ही वापस मुड़ा तो मेरा पैर किसी चीज से टकराया... मैंने उस चीज पर टॉर्च मारी और जैसे ही मैंने वह चीज देखी, मेरा पूरा खून सूख गया... कलेजा जैसे फट पड़ा हो.. मैं सिर्फ इतना ही बोल पाया..
"यह तो वही लॉकेट है,जो मैंने गुड़िया को दिया था"
🤫
08-Nov-2021 10:44 AM
बढिया कहानी....
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